सुबह सुबह सूरज की किरणें
मुझको जब सहलाती हैं
मंद मंद चलती हवा जब
छू कर मुझे खिलखिलाती है
तब धीरे से मनमना के
पलकें मेरी खुल जाती हैं ।
देखता क्या हूँ सामने मेरे
बाग़ लगे हैं पेड़ों के …
आम लगे हैं कितने देखो
और अमरुद भी लदे हुए !
कभी नीम की छाँव पुकारे
कभी पीपल भी झूम उठें ।
इन्हें देख करता हूँ याद
अपने दादाजी का साथ
हर एक पेड़ सपना है उनका
मेरे लिए सींचा हर तिनका
फूटा जो बंजर धरती से
बन के धन मेरे जीवन का ।
आज झूमते पेड़ों को हम
काट के राह बनाते हैं
दुखी मन में कुछ सवाल
मेरे घर कर जाते हैं ।
झूमते गाते पेड़ों को जब
काट कर गिरते देखा तो
विचलित मन से बार बार
एक सवाल पर सोचता हूँ ।
जिस प्रकृति की गोद में
मैं ये जीवन पाता हूँ
क्योँ लालच में आपके
उसके प्रकोप का दंड में पता हूँ ??
मुझको जब सहलाती हैं
मंद मंद चलती हवा जब
छू कर मुझे खिलखिलाती है
तब धीरे से मनमना के
पलकें मेरी खुल जाती हैं ।
देखता क्या हूँ सामने मेरे
बाग़ लगे हैं पेड़ों के …
आम लगे हैं कितने देखो
और अमरुद भी लदे हुए !
कभी नीम की छाँव पुकारे
कभी पीपल भी झूम उठें ।
इन्हें देख करता हूँ याद
अपने दादाजी का साथ
हर एक पेड़ सपना है उनका
मेरे लिए सींचा हर तिनका
फूटा जो बंजर धरती से
बन के धन मेरे जीवन का ।
आज झूमते पेड़ों को हम
काट के राह बनाते हैं
दुखी मन में कुछ सवाल
मेरे घर कर जाते हैं ।
झूमते गाते पेड़ों को जब
काट कर गिरते देखा तो
विचलित मन से बार बार
एक सवाल पर सोचता हूँ ।
जिस प्रकृति की गोद में
मैं ये जीवन पाता हूँ
क्योँ लालच में आपके
उसके प्रकोप का दंड में पता हूँ ??