Monday, May 11, 2015

धरोहर। .. २

सुबह सुबह सूरज की किरणें 
मुझको जब सहलाती हैं 
मंद मंद चलती हवा जब 
छू कर मुझे खिलखिलाती है 
तब धीरे से मनमना के 
पलकें मेरी खुल जाती हैं । 

देखता क्या हूँ सामने मेरे
बाग़ लगे हैं पेड़ों के … 
आम लगे हैं कितने देखो 
और अमरुद भी लदे हुए !
कभी नीम की छाँव पुकारे 
कभी पीपल भी झूम उठें । 

इन्हें देख करता हूँ याद 
अपने दादाजी का साथ 
हर एक पेड़ सपना है उनका 
मेरे लिए सींचा हर तिनका 
फूटा जो बंजर धरती से 
बन के धन मेरे जीवन का । 

आज झूमते पेड़ों को हम
काट के राह बनाते हैं 
दुखी मन में कुछ सवाल
मेरे घर कर जाते हैं । 


झूमते गाते पेड़ों को जब 
काट कर गिरते देखा तो 
विचलित मन से बार बार 
एक सवाल पर सोचता हूँ । 

जिस प्रकृति की गोद में 
मैं ये जीवन पाता हूँ 
क्योँ लालच में आपके 
उसके प्रकोप का दंड में पता हूँ ??





 

Thursday, April 30, 2015

धरोहर ..!!

सुबह सुबह  सूरज की किरणें
मुझको जब सहलाती हैं,
नींद की गोद  में होता हूँ पर 
गुदगुदी सी मुझे मचाती हैं । 

मलते हुए आँख को जब मैं
खिड़की पर आ टिकता हूँ,
मंद मंद चलती हवा जब
छु कर मुझे खिलखिलाती है। 

तब धीरे से मनमाना के
पलकें मेरी खुल जाती हैं ।

देख सामने पंख पसारे
पंछी झूमें बादल में,
मस्ती भरी चहचहाहट
गूँज रही सारे नभ में ।

फूल मेरी बगिया के सारे
हँस हँस मुझे बुलाते हैं,
ध्यान से देखा ,साथ में उनके
भँवरे भी गुनगुनाते हैं ।

घास पे देखो ओस की बूँदें
प्रभा में यूँ टिमटिमाती हैं,
लगे कि तारों की चादर
बगिया में बिछ जाती । 

झूमते गाते पेड़ों के
परे नज़र जब जाती है
दिखे मुझे पर्वत विशाल ,
खड़े लिए हाथों में हाथ,
लगे  कि जैसे धरती की छाती
गर्व से फूले जाती है ।

कहीं बीच में झरना  उनके
अपनी रह बनाता  है,
कल कल करता , उत्साहित हो
नदी में वो मिल जाता है ।

ठुमक ठुमक के बहती नदिया
सागर विलीन हो जाती है
उठें उमंग में जिसकी लहरें
मधुर संगीत बनाती हैं ।

इन्द्रधनुष के रंग देख कर
उमंग से मैं भर जाता हूँ
देख के इतने रूप निराले
सोच में में पद जाता हूँ ।

जिस प्रकृति की गोद  में मैं
अपना जीवन पाता  हूँ,
क्योँ लालच में आपके ,
उसके प्रकोप का दंड मैं पता हूँ
उसके प्रकोप का दंड मैं पता हूँ ।