Thursday, April 30, 2015

धरोहर ..!!

सुबह सुबह  सूरज की किरणें
मुझको जब सहलाती हैं,
नींद की गोद  में होता हूँ पर 
गुदगुदी सी मुझे मचाती हैं । 

मलते हुए आँख को जब मैं
खिड़की पर आ टिकता हूँ,
मंद मंद चलती हवा जब
छु कर मुझे खिलखिलाती है। 

तब धीरे से मनमाना के
पलकें मेरी खुल जाती हैं ।

देख सामने पंख पसारे
पंछी झूमें बादल में,
मस्ती भरी चहचहाहट
गूँज रही सारे नभ में ।

फूल मेरी बगिया के सारे
हँस हँस मुझे बुलाते हैं,
ध्यान से देखा ,साथ में उनके
भँवरे भी गुनगुनाते हैं ।

घास पे देखो ओस की बूँदें
प्रभा में यूँ टिमटिमाती हैं,
लगे कि तारों की चादर
बगिया में बिछ जाती । 

झूमते गाते पेड़ों के
परे नज़र जब जाती है
दिखे मुझे पर्वत विशाल ,
खड़े लिए हाथों में हाथ,
लगे  कि जैसे धरती की छाती
गर्व से फूले जाती है ।

कहीं बीच में झरना  उनके
अपनी रह बनाता  है,
कल कल करता , उत्साहित हो
नदी में वो मिल जाता है ।

ठुमक ठुमक के बहती नदिया
सागर विलीन हो जाती है
उठें उमंग में जिसकी लहरें
मधुर संगीत बनाती हैं ।

इन्द्रधनुष के रंग देख कर
उमंग से मैं भर जाता हूँ
देख के इतने रूप निराले
सोच में में पद जाता हूँ ।

जिस प्रकृति की गोद  में मैं
अपना जीवन पाता  हूँ,
क्योँ लालच में आपके ,
उसके प्रकोप का दंड मैं पता हूँ
उसके प्रकोप का दंड मैं पता हूँ ।  














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