सुबह सुबह सूरज की किरणें
मलते हुए आँख को जब मैं
खिड़की पर आ टिकता हूँ,
मंद मंद चलती हवा जब
छु कर मुझे खिलखिलाती है।
तब धीरे से मनमाना के
पलकें मेरी खुल जाती हैं ।
देख सामने पंख पसारे
पंछी झूमें बादल में,
मस्ती भरी चहचहाहट
गूँज रही सारे नभ में ।
फूल मेरी बगिया के सारे
हँस हँस मुझे बुलाते हैं,
ध्यान से देखा ,साथ में उनके
भँवरे भी गुनगुनाते हैं ।
घास पे देखो ओस की बूँदें
प्रभा में यूँ टिमटिमाती हैं,
लगे कि तारों की चादर
बगिया में बिछ जाती ।
झूमते गाते पेड़ों के
परे नज़र जब जाती है
दिखे मुझे पर्वत विशाल ,
खड़े लिए हाथों में हाथ,
लगे कि जैसे धरती की छाती
गर्व से फूले जाती है ।
कहीं बीच में झरना उनके
अपनी रह बनाता है,
कल कल करता , उत्साहित हो
नदी में वो मिल जाता है ।
ठुमक ठुमक के बहती नदिया
सागर विलीन हो जाती है
उठें उमंग में जिसकी लहरें
मधुर संगीत बनाती हैं ।
इन्द्रधनुष के रंग देख कर
उमंग से मैं भर जाता हूँ
देख के इतने रूप निराले
सोच में में पद जाता हूँ ।
जिस प्रकृति की गोद में मैं
अपना जीवन पाता हूँ,
क्योँ लालच में आपके ,
उसके प्रकोप का दंड मैं पता हूँ
उसके प्रकोप का दंड मैं पता हूँ ।
मुझको जब सहलाती हैं,
नींद की गोद में होता हूँ पर
गुदगुदी सी मुझे मचाती हैं ।
मलते हुए आँख को जब मैं
खिड़की पर आ टिकता हूँ,
मंद मंद चलती हवा जब
छु कर मुझे खिलखिलाती है।
तब धीरे से मनमाना के
पलकें मेरी खुल जाती हैं ।
देख सामने पंख पसारे
पंछी झूमें बादल में,
मस्ती भरी चहचहाहट
गूँज रही सारे नभ में ।
फूल मेरी बगिया के सारे
हँस हँस मुझे बुलाते हैं,
ध्यान से देखा ,साथ में उनके
भँवरे भी गुनगुनाते हैं ।
घास पे देखो ओस की बूँदें
प्रभा में यूँ टिमटिमाती हैं,
लगे कि तारों की चादर
बगिया में बिछ जाती ।
झूमते गाते पेड़ों के
परे नज़र जब जाती है
दिखे मुझे पर्वत विशाल ,
खड़े लिए हाथों में हाथ,
लगे कि जैसे धरती की छाती
गर्व से फूले जाती है ।
कहीं बीच में झरना उनके
अपनी रह बनाता है,
कल कल करता , उत्साहित हो
नदी में वो मिल जाता है ।
ठुमक ठुमक के बहती नदिया
सागर विलीन हो जाती है
उठें उमंग में जिसकी लहरें
मधुर संगीत बनाती हैं ।
इन्द्रधनुष के रंग देख कर
उमंग से मैं भर जाता हूँ
देख के इतने रूप निराले
सोच में में पद जाता हूँ ।
जिस प्रकृति की गोद में मैं
अपना जीवन पाता हूँ,
क्योँ लालच में आपके ,
उसके प्रकोप का दंड मैं पता हूँ
उसके प्रकोप का दंड मैं पता हूँ ।
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